तमाम चारागरों से तो मिल चुका है जवाब
कम-सिनी जिन की हमें याद है और कल की ही बात
तसव्वुर ने तिरे आबाद जब से घर किया मेरा
आलम-ए-इश्क़ में अल्लाह-रे नज़र की वुसअत
उस ने माँगा जो दिल दिए ही बनी
दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
तेरी आँखें जिसे चाहें उसे अपना कर लें
जिस को चाहा तू ने उस को मिल गया
इस पर्दे में ये हुस्न का आलम है इलाही
अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
हज़रत-ए-नासेह भी मय पीने लगे
पामालियों का ज़ीना है अर्श से भी ऊँचा