जिस को चाहा तू ने उस को मिल गया
वर्ना तुझ को पाने वाला कौन था
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तसव्वुर ने तिरे आबाद जब से घर किया मेरा
अब तो मय-ख़ानों से भी कुछ बढ़ कर
क़दमों पे गिरा तो हट के बोले
हज़रत-ए-नासेह भी मय पीने लगे
अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
कम-सिनी जिन की हमें याद है और कल की ही बात
पामालियों का ज़ीना है अर्श से भी ऊँचा
उस ने माँगा जो दिल दिए ही बनी
तमाम चारागरों से तो मिल चुका है जवाब
ज़र्फ़ तो देखिए मेरे दिल-ए-शैदाई का