कम-सिनी जिन की हमें याद है और कल की ही बात
आज उन्हें देखिए क्या हो गए क्या से बढ़ कर
Habib Jalib
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Gulzar
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अब तो मय-ख़ानों से भी कुछ बढ़ कर
तसव्वुर ने तिरे आबाद जब से घर किया मेरा
आलम-ए-इश्क़ में अल्लाह-रे नज़र की वुसअत
जी में आता है कि फूलों की उड़ा दूँ ख़ुशबू
एक को एक नहीं रश्क से मरने देता
दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
पारसा बन के सू-ए-मय-ख़ाना
इंतिहा-ए-मअरिफ़त से ऐ 'शरफ़'
इस पर्दे में ये हुस्न का आलम है इलाही
दिल में मिरे जिगर में मिरे आँख में मिरी
उस ने माँगा जो दिल दिए ही बनी