एक को एक नहीं रश्क से मरने देता
ये नया कूचा-ए-क़ातिल में तमाशा देखा
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Gulzar
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(439) Peoples Rate This
जी में आता है कि फूलों की उड़ा दूँ ख़ुशबू
कम-सिनी जिन की हमें याद है और कल की ही बात
तेरी आँखें जिसे चाहें उसे अपना कर लें
ज़र्फ़ तो देखिए मेरे दिल-ए-शैदाई का
दिल में मिरे जिगर में मिरे आँख में मिरी
आलम-ए-इश्क़ में अल्लाह-रे नज़र की वुसअत
अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
उश्शाक़ के आगे न लड़ा ग़ैरों से आँखें
दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
शैख़ कुछ अपने-आप को समझें
पारसा बन के सू-ए-मय-ख़ाना
इस पर्दे में ये हुस्न का आलम है इलाही