शैख़ कुछ अपने-आप को समझें
मय-कशों की नज़र में कुछ भी नहीं
Parveen Shakir
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Gulzar
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Habib Jalib
Allama Iqbal
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(456) Peoples Rate This
पामालियों का ज़ीना है अर्श से भी ऊँचा
जी में आता है कि फूलों की उड़ा दूँ ख़ुशबू
तसव्वुर ने तिरे आबाद जब से घर किया मेरा
इंतिहा-ए-मअरिफ़त से ऐ 'शरफ़'
क़दमों पे गिरा तो हट के बोले
तेरी आँखें जिसे चाहें उसे अपना कर लें
अब तो मय-ख़ानों से भी कुछ बढ़ कर
दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
इस पर्दे में ये हुस्न का आलम है इलाही
हैरत में हूँ इलाही क्यूँ-कर ये ख़त्म होगा
पारसा बन के सू-ए-मय-ख़ाना
कम-सिनी जिन की हमें याद है और कल की ही बात