तेरी आँखें जिसे चाहें उसे अपना कर लें
काश ऐसा ही सिखा दें कोई अफ़्सूँ मुझ को
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पामालियों का ज़ीना है अर्श से भी ऊँचा
इस पर्दे में ये हुस्न का आलम है इलाही
एक को एक नहीं रश्क से मरने देता
कम-सिनी जिन की हमें याद है और कल की ही बात
दिल में मिरे जिगर में मिरे आँख में मिरी
क़दमों पे गिरा तो हट के बोले
ज़र्फ़ तो देखिए मेरे दिल-ए-शैदाई का
अब तो मय-ख़ानों से भी कुछ बढ़ कर
अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
दुख़्त-ए-रज़ और तू कहाँ मिलती
तसव्वुर ने तिरे आबाद जब से घर किया मेरा
हैरत में हूँ इलाही क्यूँ-कर ये ख़त्म होगा