उश्शाक़ के आगे न लड़ा ग़ैरों से आँखें
डर है कि न हो जाए लड़ाई तिरे दर पर
Rahat Indori
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शैख़ कुछ अपने-आप को समझें
एक को एक नहीं रश्क से मरने देता
आलम-ए-इश्क़ में अल्लाह-रे नज़र की वुसअत
अब तो मय-ख़ानों से भी कुछ बढ़ कर
तमाम चारागरों से तो मिल चुका है जवाब
अल्लाह अल्लाह ख़ुसूसिय्यत-ए-ज़ात-ए-हसनैन
जी में आता है कि फूलों की उड़ा दूँ ख़ुशबू
पारसा बन के सू-ए-मय-ख़ाना
दिल में मिरे जिगर में मिरे आँख में मिरी
इंतिहा-ए-मअरिफ़त से ऐ 'शरफ़'
ज़र्फ़ तो देखिए मेरे दिल-ए-शैदाई का
तेरी आँखें जिसे चाहें उसे अपना कर लें