दुख़्त-ए-रज़ ज़ाहिद से बोली मुझ से घबराते हो क्यूँ
क्या तुम्हीं हो पाक-दामन पारसा मैं भी तो हूँ
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Wasi Shah
Rahat Indori
Faiz Ahmad Faiz
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Gulzar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(445) Peoples Rate This
दिल में मिरे जिगर में मिरे आँख में मिरी
कम-सिनी जिन की हमें याद है और कल की ही बात
पामालियों का ज़ीना है अर्श से भी ऊँचा
हज़रत-ए-नासेह भी मय पीने लगे
पारसा बन के सू-ए-मय-ख़ाना
आलम-ए-इश्क़ में अल्लाह-रे नज़र की वुसअत
तसव्वुर ने तिरे आबाद जब से घर किया मेरा
तमाम चारागरों से तो मिल चुका है जवाब
शैख़ कुछ अपने-आप को समझें
एक को एक नहीं रश्क से मरने देता
क़दमों पे गिरा तो हट के बोले