आगे आगे कोई मिशअल सी लिए चलता था
हाए क्या नाम था उस शख़्स का पूछा भी नहीं
Parveen Shakir
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वो गदा-गरान-ए-जल्वा सर-ए-रहगुज़ार चुप थे
आबला-पाई से वीराना महक जाता है
हयात रास न आए अजल बहाना करे
ज़रा सी बात थी बात आ गई जुदाई तक
आब ओ गिल
छोड़ दूँ शहर तिरा छोड़ दूँ दुनिया तेरी
क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म
ख़ुद अपना हाल दिल-ए-मुब्तला से कुछ न कहा
ज़िंदगी हम से तिरे नाज़ उठाए न गए
सुख़न राज़-ए-नशात-ओ-ग़म का पर्दा हो ही जाता है
सँभला नहीं दिल तुझ से बिछड़ कर कई दिन तक
ख़ौफ़-ए-सहरा