ज़िंदगी हम से तिरे नाज़ उठाए न गए
साँस लेने की फ़क़त रस्म अदा करते थे
Habib Jalib
Allama Iqbal
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Faiz Ahmad Faiz
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Gulzar
Ahmad Faraz
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ख़्वार-ओ-रुसवा थे यहाँ अहल-ए-सुख़न पहले भी
मिसाल-ए-शोला-ओ-शबनम रहा है आँखों में
किस किस को अब रोना होगा जाने क्या क्या भूल गया
तिरी नज़र सबब-ए-तिश्नगी न बन जाए
यही सफ़र की तमन्ना यही थकन की पुकार
आगे आगे कोई मिशअल सी लिए चलता था
सोज़-ए-दुआ से साज़-ए-असर कौन ले गया
सन कर बयान-ए-दर्द कलेजा दहल न जाए
हयात रास न आए अजल बहाना करे
जाने क्या क़ीमत-ए-अरबाब-ए-वफ़ा ठहरेगी
हम-ज़ाद
दिल-शिकस्ता हुए टूटा हुआ पैमान बने