उन से मिलते थे तो सब कहते थे क्यूँ मिलते हो
अब यही लोग न मिलने का सबब पूछते हैं
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
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यही सफ़र की तमन्ना यही थकन की पुकार
उस का होना भी भरी बज़्म में है वज्ह-ए-सुकूँ
छटा आदमी
ख़्वार-ओ-रुसवा थे यहाँ अहल-ए-सुख़न पहले भी
कोई तो आ के रुला दे कि हँस रहा हूँ मैं
शब ओ रोज़ जैसे ठहर गए कोई नाज़ है न नियाज़ है
ख़ौफ़-ए-सहरा
वो गदा-गरान-ए-जल्वा सर-ए-रहगुज़ार चुप थे
कौन देता रहा सहरा में सदा मेरी तरह
आबला-पाई से वीराना महक जाता है
वो कौन है जिस की वहशत पर सुनते हैं कि जंगल रोता है
क्या क़यामत है कि इक शख़्स का हो भी न सकूँ