मिरी तलाश में वो भी ज़रूर आएगा
सो मैं भी चश्म-ए-ख़रीदार से निकलता हूँ
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यहाँ रहने में दुश्वारी बहुत है
टूटे हुए ख़्वाबों के तलबगार भी आए
अगर सुने तो किसी को यक़ीं नहीं आए
सफ़र सराबों का बस आज कटने वाला है
ख़ुद से फ़रार इतना आसान भी नहीं है
चश्म-ए-गर्दूं फिर तमाज़त अपनी बरसाने लगी
मेरे क़दमों पर निगूँ मेरा ही सर है भी तो क्या
अजब तिलिस्म है नैरंग-ए-जावेदानी का
अब्र का टुकड़ा कोई बाला-ए-बाम आता हुआ
क्या ख़त्म न होगी कभी सहरा की हुकूमत
मिल गया जब वो नगीं फिर ख़ूबी-ए-तक़दीर से
जो तसव्वुर में है उस को कोई क्या रौशन करे