उर्यां न वो नहाया हम्माम हो कि दरिया
चश्म-ए-हुबाब ने भी उस का बदन न देखा
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तुझ तक गुज़र किसी का ऐ गुल-बदन न देखा
जो शाना गेसू-ए-जानाँ में हम कभू करते
तुम अपने मरीज़-ग़म-हिज्राँ की ख़बर लो
बे-सबब वो न मिरे क़त्ल की तदबीर में था
जाता है यार सैर को गुलज़ार की तरफ़
खा के तेग़-ए-निगह-ए-यार दिल-ए-ज़ार गिरा
दिल फड़क जाएगा वो शोख़ जो ख़ंदाँ होगा
करता है रहम कौन किसी बे-गुनाह पर
अर्ज़-ए-अहवाल-ए-दिल-ए-ज़ार करूँ या न करूँ
इस बज़्म में पाते नहीं दिल-सोज़ किसी को
बेजा न था उठ बैठना बेचैनी से मेरा
मुँह से जो मिलाइए किसी को