निकल आए जो हम घर से तो सौ रस्ते निकल आए
अबस था सोचना घर में कोई ग़ैबी इशारा हो
Ahmad Faraz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(493) Peoples Rate This
ख़्वाब टूटे पड़े हैं सब मेरे
शहर सहरा है घर बयाबाँ है
कुछ ऐसे दौर भी ताहम गिरफ़्त में आए
उस के जाने पे ये एहसास हुआ है 'शाहिद'
चलते चलते चले आए हैं परेशानी में
आग को फूल कहे जाएँ ख़िर्द-मंद अपने
दिल की बस्ती पे किसी दर्द का साया भी नहीं
ये रोज़ ओ शब का तसलसुल रवाँ-दवाँ ही रहा
हूँ किस मक़ाम पे दिल में तिरे ख़बर न लगे
बजा है ख़्वाब-नवर्दी प ख़्वाब ऐसे हों
फ़ुग़ान-ए-रूह कोई किस तरह सुनाए उसे