इश्क़ और अक़्ल में हुई है शर्त
जीत और हार का तमाशा है
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मिरे सीं दूर क्या चाहते हैं साया-ए-इश्क़
दिल ले गया है मुझ कूँ दे उम्मीद-ए-दिल-दही
शोर है बस-कि तुझ मलाहत का
ज़िंदगानी दर्द-ए-सर है यार बिन
अगर कुछ होश हम रखते तो मस्ताने हुए होते
क्या बला का है नशा इश्क़ के पैमाने में
हुआ हूँ इन दिनों माइल किसी का
कहाँ है गुल-बदन मोहन पियारा
बात कर दिल सती हिजाब निकाल
जो कुछ कि तुम सीं मुझे बोलना था बोल चुका
किया है जब सीं अमल बे-ख़ुदी के हाकिम ने
भरा कमाल-ए-वफ़ा सें ख़याल का शीशा