देखने वालो तबस्सुम को करम मत समझो
उन्हें तो देखने वालों पे हँसी आती है
Ahmad Faraz
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Wasi Shah
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Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Parveen Shakir
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मिरी ज़बाँ से मिरी दास्ताँ सुनो तो सही
अगर हम कहें और वो मुस्कुरा दें
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
तेरी आँखों में हम ने क्या देखा
किसी रंजिश को हवा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
दिल के दीवार-ओ-दर पे क्या देखा
हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
आशिक़ी हो कि बंदगी 'फ़ाख़िर'
ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो
अहल-ए-उल्फ़त के हवालों पे हँसी आती है
ये सिखाया है दोस्ती ने हमें
ज़िंदगी तुझ को जिया है कोई अफ़्सोस नहीं