फैला के तसव्वुर के असर को मैं ने
मशहूर किया सई-ए-नज़र को मैं ने
ज़ाहिर दर-ओ-बाम से है नक़्श-ए-रुख़-ए-दोस्त
बुत-ख़ाना बना रक्खा है घर को मैं ने
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(694) Peoples Rate This
सूरत वो पहली कि हो मगर माह-ए-तमाम
एक है जब मरजा-ए-इस्लाम-ओ-कुफ़्र
कहते हैं छुप के रात को पीता है रोज़ मय
अंदाज़-ओ-अदा से कुछ अगर पहचानूँ
गो उस की नहीं लुत्फ़-ओ-इनायत बाक़ी
ज़ाहिर में अगरचे यार ग़म-ख़्वार नहीं
दिल में उतरी है निगह रह गईं बाहर पलकें
ऐ नोश-ए-लब-ओ-माह-रुख़-ओ-ज़ोहरा-जबीं
क्या मेरे काम से है रवाई को दुश्मनी
है दौर-ए-फ़लक ज़ोफ़ में पेश-ए-नज़र अपने
है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स
सँभाल वाइ'ज़ ज़बान अपनी ख़ुदा से डरा इक ज़रा हया कर