अंदाज़-ओ-अदा से कुछ अगर पहचानूँ
अलबत्ता उसे ख़ुदा क़ाइल जानूँ
काफ़िर मग़रूर बे-कीना-कश बे-बाक
वो और ख़ुदा को माने क्यूँ कर मानूँ
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चाहूँ कि हाल-ए-वहशत-ए-दिल कुछ रक़म करूँ
बाक़ी न रही हाथ में जब क़ुव्वत-ओ-ज़ोर
ऐ नोश-ए-लब-ओ-माह-रुख़-ओ-ज़ोहरा-जबीं
हम उन की नज़र में समाने लगे
दिल में उतरी है निगह रह गईं बाहर पलकें
थी आसमाँ पे मेरी चढ़ाई तमाम रात
अफ़्साना-ए-मजनूँ से नहीं कम मिरा क़िस्सा
ईद के दिन जाइए क्यूँ ईद-गाह
नागाह मुझे दिखा के ताब-ए-रुख़्सार
वाइ'ज़ ओ शैख़ सभी ख़ूब हैं क्या बतलाऊँ
सूरत वो पहली कि हो मगर माह-ए-तमाम