लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा
आ मिरी आँख से अदा हो जा
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हमारी राह में बैठेगी कब तक तेरी दुनिया
परी उड़ जाएगी और राजधानी ख़त्म होगी
बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग
इन सुलगती हुई साँसों को नहीं देखते लोग
ज़र का बंदा हो कि महरूमी का मारा हुआ शख़्स
फेंक दे ख़ुश्क फूल यादों के
कल जहाँ दीवार ही दीवार थी
याद और ग़म की रिवायात से निकला हुआ है
जैसे वीरान हवेली में हों ख़ामोश चराग़
कहीं शुऊर में सदियों का ख़ौफ़ ज़िंदा था
मौज-ए-ख़याल में न किसी जल-परी में आए