फेंक दे ख़ुश्क फूल यादों के
ज़िद न कर तू भी बे-वफ़ा हो जा
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
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Anwar Masood
Habib Jalib
Gulzar
Rahat Indori
Jaun Eliya
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याद और ग़म की रिवायात से निकला हुआ है
इन सुलगती हुई साँसों को नहीं देखते लोग
कहीं शुऊर में सदियों का ख़ौफ़ ज़िंदा था
दामन बचा रहे थे कि चेहरा भी जल गया
जैसे वीरान हवेली में हों ख़ामोश चराग़
बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग
सब्ज़ पेड़ों को पता तक नहीं चलता शायद
सूरत-ए-इश्क़ बदलता नहीं तू भी मैं भी
मैं तिरे हिज्र से निकलूँगा तो मर जाऊँगा
मौज-ए-ख़याल में न किसी जल-परी में आए
ख़ाक होती हुई हस्ती से उठा