सब्ज़ पेड़ों को पता तक नहीं चलता शायद
ज़र्द पत्ते भरे मंज़र से निकल जाते हैं
Habib Jalib
Gulzar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(784) Peoples Rate This
हिज्र था बार-ए-अमानत की तरह
परी उड़ जाएगी और राजधानी ख़त्म होगी
इन सुलगती हुई साँसों को नहीं देखते लोग
कहीं शुऊर में सदियों का ख़ौफ़ ज़िंदा था
बदन में रूह की तर्सील करने वाले लोग
सूरत-ए-इश्क़ बदलता नहीं तू भी मैं भी
बदन में दिल था मुअल्लक़ ख़ला में नज़रें थीं
यहीं आना है भटकती हुई आवाज़ों को
कल जहाँ दीवार ही दीवार थी
अब ज़माने में मोहब्बत है तमाशे की तरह
लफ़्ज़ की क़ैद से रिहा हो जा