जब गुलशन-ए-दहर में था मस्कन मेरा
फूलों से भरा हुआ था दामन मेरा
अब बा'द-ए-फ़ना सुबुक हूँ इतना 'वहशी'
निकहत में गुलों के है नशेमन मेरा
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देखो देखो हयात-ए-फ़ानी देखो
ज़मीं से आसमाँ तक आसमाँ से ला-मकाँ तक है
जो हुस्न में आ के नाज़ बन जाता है
शिकस्त-ए-साग़र-ए-दिल की सदाएँ सुन रहा हूँ मैं
आ दिल में फ़ज़ा-ए-तूर बन कर छा जा
घटाएँ ऊदी ऊदी मै-कदा बर-दोश-ए-फ़स्ल-ए-गुल