मोहकमे में इश्क़ के है यारो दीवाने का शोर
मेरे दिल देने का ग़ुल उस के मुकर जाने का शोर
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जूँ गुल अज़-बस-कि जुनूँ है मिरा सामान के सात
कुछ ग़ौर का जौहर नहीं ख़ुद-फ़हमी में हैराँ हैं
कुफ़्र मोमिन है न करना दिलबराँ से इख़्तिलात
ख़त ने आ कर की है शायद रहम फ़रमाने की अर्ज़
मिरे नज़'अ को मत उस से कहो हुआ सो हुआ
ख़ुदा शाहिद बुतो दो-जग से ये सौदा है निर्वाला
इस ज़माने में बुज़ुर्गी सिफ़्लगी का नाम है
कर रहे हैं मुझ से तुझ-बिन दीदा-ए-नमनाक जंग
दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब
नयन में ख़ूँ भर आया दिल में ख़ार-ए-ग़म छुपा शायद
जो हम ये तिफ़लों के संग-ए-जफ़ा के मारे हैं
जब तन न रहा मेरा हूँ वासिल-ए-जानाना