हम को हाजत नहीं नक़ीबों की
शेर अपना नक़ीब है ख़ुद ही
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किस ने बसाया था और उन को किस ने यूँ बर्बाद किया
भूका बंगाल
हम न कहते थे शाइरी है वबाल
कौन सुनता है भिकारी की सदाएँ इस लिए
जीने का लुत्फ़ कुछ तो उठाओ नशे में आओ
तुझ से मिल कर दिल में रह जाती है अरमानों की बात
न पूछो बेबसी उस तिश्ना-लब की
माँ
शीशा उस का अजीब है ख़ुद ही
मिरे फ़िक्र ओ फ़न को नई फ़ज़ा नए बाल-ओ-पर की तलाश है
है जिस की ठोकरों में आब-ए-ज़ि़ंदगी 'वामिक़'
दीवाने दीवाने ठहरे खेल गए अँगारों से