ये अलग बात कि वो दिल से किसी और का था
बात तो उस ने हमारी भी ब-ज़ाहिर रक्खी
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ख़ुशा ऐ ज़ख़्म कि सूरत नई निकलती है
ये अहद क्या है कि सब पर गिराँ गुज़रता है
ना-ख़ुदा छोड़ गए बीच भँवर में तो 'ज़फ़र'
तू ने क्यूँ हम से तवक़्क़ो न मुसाफ़िर रक्खी
कास-ए-दर्द लिए कब से खड़े सोचते हैं
बजा है ज़िंदगी से हम बहुत रहे नाराज़
इक ऐसा वक़्त भी सैर-ए-चमन में देखा है
आ के जब ख़्वाब तुम्हारे ने कहा बिस्मिल्लाह
सब बड़े ज़ोम से आए थे नए सूरत-गर
ख़याल-ए-ताज़ा से करते हैं ख़्वाब-ए-नौ तख़्लीक़