ये अहद क्या है कि सब पर गिराँ गुज़रता है
ये क्या तिलिस्म है क्या इम्तिहाँ गुज़रता है
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Rahat Indori
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Gulzar
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(734) Peoples Rate This
आ के जब ख़्वाब तुम्हारे ने कहा बिस्मिल्लाह
कास-ए-दर्द लिए कब से खड़े सोचते हैं
इक ख़ौफ़-ए-दुश्मनी जो तआक़ुब में सब के है
बजा है ज़िंदगी से हम बहुत रहे नाराज़
इक ऐसा वक़्त भी सैर-ए-चमन में देखा है
ख़याल-ए-ताज़ा से करते हैं ख़्वाब-ए-नौ तख़्लीक़
ना-ख़ुदा छोड़ गए बीच भँवर में तो 'ज़फ़र'
जान-ए-बे-ताब अजब तेरे ठिकाने निकले
तू ने क्यूँ हम से तवक़्क़ो न मुसाफ़िर रक्खी
बदन से रूह तलक हम लहू लहू हुए हैं
सब बड़े ज़ोम से आए थे नए सूरत-गर