इक ख़ौफ़-ए-दुश्मनी जो तआक़ुब में सब के है
इक हर्फ़-ए-लुत्फ़ जो कहीं ग़ाएब है शहर में
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Rahat Indori
Javed Akhtar
Wasi Shah
Habib Jalib
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(782) Peoples Rate This
बजा है ज़िंदगी से हम बहुत रहे नाराज़
कास-ए-दर्द लिए कब से खड़े सोचते हैं
ये अलग बात कि वो दिल से किसी और का था
इक ऐसा वक़्त भी सैर-ए-चमन में देखा है
उम्मीद-ए-सुब्ह-ए-बहाराँ ख़िज़ाँ से खींचते हैं
सब बड़े ज़ोम से आए थे नए सूरत-गर
तू ने क्यूँ हम से तवक़्क़ो न मुसाफ़िर रक्खी
ख़ुशा ऐ ज़ख़्म कि सूरत नई निकलती है
आ के जब ख़्वाब तुम्हारे ने कहा बिस्मिल्लाह
ख़याल-ए-ताज़ा से करते हैं ख़्वाब-ए-नौ तख़्लीक़
हर सम्त शोर-ए-बंदा ओ साहिब है शहर में