ज़फ़र गोरखपुरी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ज़फ़र गोरखपुरी (page 2)
नाम | ज़फ़र गोरखपुरी |
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अंग्रेज़ी नाम | Zafar Gorakhpuri |
जन्म की तारीख | 1935 |
जो अपनी है वो ख़ाक-ए-दिल-नशीं ही काम आएगी
जो आए वो हिसाब-ए-आब-ओ-दाना करने वाले थे
जब इतनी जाँ से मोहब्बत बढ़ा के रक्खी थी
इरादा हो अटल तो मोजज़ा ऐसा भी होता है
एक मुट्ठी एक सहरा भेज दे
दिन को भी इतना अंधेरा है मिरे कमरे में
धूप है क्या और साया क्या है अब मालूम हुआ
देखें क़रीब से भी तो अच्छा दिखाई दे
चेहरा लाला-रंग हुआ है मौसम-ए-रंज-ओ-मलाल के बाद
बदन कजला गया तो दिल की ताबानी से निकलूँगा
अश्क-ए-ग़म आँख से बाहर भी नहीं आने का