उजाला अपने घरौंदे में रह गया तो रात
कहाँ क़याम करेगी कहाँ से गुज़रेगी
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इक नदी में सैकड़ों दरिया की तुग़्यानी मिली
भले ही आँख मिरी सारी रात जागेगी
जीवन का संगीत अचानक अंतिम सुर को छू लेता है
मैं ही दस्तक देने वाला मैं ही दस्तक सुनने वाला
देख लेते हैं अंधेरे में भी रस्ता अपना
बात पहुँचे समाअत को तासीर दे किस तरह
जल्द मंज़िल तक पहुँचने का जुनूँ उस को रहा
साहिल पर दरिया की लहरें सज्दा करती रहती हैं
धूप निकली कभी बादल से ढकी रहती है
दर्द बहता है दरिया के सीने में पानी नहीं