जला है दिल या कोई घर ये देखना लोगो
हवाएँ फिरती हैं चारों तरफ़ धुआँ ले कर
Anwar Masood
Habib Jalib
Javed Akhtar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Gulzar
Parveen Shakir
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वो जिस को देखने इक भीड़ उमडी थी सर-ए-मक़्तल
हम बाद-ए-सबा ले के जब घर से निकलते थे
अमीर-ए-शहर की नेकी
बिछड़ते दामनों में फूल की कुछ पत्तियाँ रख दो
हाए ये अपनी सादा-मिज़ाजी एटम के इस दौर में भी
ग़ुरूब-ए-शाम ही से ख़ुद को यूँ महसूस करता हूँ
इक तेरे सिवा
हवा की अंधी पनाहों में मत उछाल मुझे
कभी ख़िरद से कभी दिल से दोस्ती कर ली
नया जन्म
जाते मौसम ने जिन्हें छोड़ दिया है तन्हा
दूर तक कोई न आया उन रुतों को छोड़ने