पुराने लोग दरियाओं में नेकी डाल आते थे
हमारे दौर का इंसान नेकी कर के चीख़ेगा
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Gulzar
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Anwar Masood
Rahat Indori
Ahmad Faraz
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हम बिछड़ के तुम से बादल की तरह रोते रहे
पूछ न हम से कैसे तुझ तक नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ लाए हम
ये लम्हा लम्हा तकल्लुफ़ के टूटते रिश्ते
वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए
तिलिस्म-ए-हर्फ़-ओ-हिकायत उसे भी ले डूबा
दूर तक कोई न आया उन रुतों को छोड़ने
नया जन्म
रात फिर दर्द बनी
है धूप कभी साया शोला है कभी शबनम
ज़िंदगी ऐसे घरों से तो खंडर अच्छे थे
बे-कराँ
था हर्फ़-ए-शौक़ सैद हुआ कौन ले गया