आतंक का माहौल है छाया हुआ दिल पर
ख़ौफ़ इतना है बाज़ार अकेली नहीं जाती
बंदूक़ से महबूबा है सहमी हुई इतनी
बीमार भी होती है तो गोली नहीं खाती
Habib Jalib
Gulzar
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
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मुशायरों में हवा हूट जो मुसलसल मैं
ज़बान-ए-मादरी पूछी जो इक लड़के से कॉलेज में
किसी से दिल लगाने में बड़ी तकलीफ़ होती है
रेट इतने बढ़े हैं जूतों के
क़ातिल तो क़त्ल कर के कभी का निकल गया
मेरी बीवी ने बना रक्खी है फुटबॉल की टीम
नाले कहीं बुलबुल के सुनाई नहीं देते
चाँद पर पहुँचा कोई झाँका कोई मिर्रीख़ में
आशिक़ों की तो है भर-मार तिरे कूचे में
दिल पे अपने चोट खा कर रो दिए
एक लीडर ने ये कहा मुझ से
दिया नींद ने ऐसा आँखों को धोका