किसी से दिल लगाने में बड़ी तकलीफ़ होती है
नज़र की चोट खाने में बड़ी तकलीफ़ होती है
तिरे कूचे में ही दो चार पड़ जाते तो अच्छा था
मिरे महबूब थाने में बड़ी तकलीफ़ होती है
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मर जाए मौलवी तो फ़क़त होगी फ़ातिहा
नाले कहीं बुलबुल के सुनाई नहीं देते
अगर मिल गई हूर जन्नत में मुझ को
हाथ में पापड़ लिए बैठा था मैं
ज़बान-ए-मादरी पूछी जो इक लड़के से कॉलेज में
मेरी बीवी ने बना रक्खी है फुटबॉल की टीम
चाँद पर पहुँचा कोई झाँका कोई मिर्रीख़ में
जब हटाई उस ने चेहरे से नक़ाब
आशिक़ों की तो है भर-मार तिरे कूचे में
है विटामिन की कमी आशिक़ में तेरे इस क़दर
कहानी इश्क़-ओ-मोहब्बत की ख़त्म पर आई
पहुँचा सियाह-फ़ाम इक आला-मक़ाम पर