मुशायरों में हवा हूट जो मुसलसल मैं
तो एक शख़्स ये बोला तू मस्ख़रा बन जा
अगर तू लूटना चाहे मुशाएरे 'आसिम'
तो छोड़-छाड़ के सब कुछ तू शाएरा बन जा
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आतंक का माहौल है छाया हुआ दिल पर
क़ातिल तो क़त्ल कर के कभी का निकल गया
पहुँचा सियाह-फ़ाम इक आला-मक़ाम पर
गधे के साथ इक लीडर का फोटो
एक लीडर ने ये कहा मुझ से
किसी से दिल लगाने में बड़ी तकलीफ़ होती है
ज़बान-ए-मादरी पूछी जो इक लड़के से कॉलेज में
दिल पे अपने चोट खा कर रो दिए
हाथ में पापड़ लिए बैठा था मैं
हकला गया जो शादी में दूल्हा तो क्या हुआ
वो हाल है हर एक बशर काँप रहा है
इश्क़ में सब्र आ गया 'आसिम'