Sad Poetry of Abdul Ahad Saaz (page 2)
नाम | अब्दुल अहद साज़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Abdul Ahad Saaz |
जन्म की तारीख | 1950 |
जन्म स्थान | Mumbai |
मेरी आँखों से गुज़र कर दिल ओ जाँ में आना
मौत से आगे सोच के आना फिर जी लेना
मरने की पुख़्ता-ख़याली में जीने की ख़ामी रहने दो
मैं ने अपनी रूह को अपने तन से अलग कर रक्खा है
लम्हा-ए-तख़्लीक़ बख़्शा उस ने मुझ को भीक में
लफ़्ज़ों के सहरा में क्या मा'नी के सराब दिखाना भी
लफ़्ज़ का दरिया उतरा दश्त-ए-मआनी फैला
खुली जब आँख तो देखा कि दुनिया सर पे रक्खी है
ख़ुद को क्यूँ जिस्म का ज़िंदानी करें
खिले हैं फूल की सूरत तिरे विसाल के दिन
ख़राब-ए-दर्द हुए ग़म-परस्तियों में रहे
कभी नुमायाँ कभी तह-नशीं भी रहते हैं
जो कुछ भी ये जहाँ की ज़माने की घर की है
जीतने मारका-ए-दिल वो लगातार गया
जब तक शब्द के दीप जलेंगे सब आएँगे तब तक यार
जाने क़लम की आँख में किस का ज़ुहूर था
हम अपने ज़ख़्म कुरेदते हैं वो ज़ख़्म पराए धोते थे
हिसार-ए-दीद में जागा तिलिस्म-ए-बीनाई
हर इक लम्हे की रग में दर्द का रिश्ता धड़कता है
हद-ए-उफ़ुक़ पर सारा कुछ वीरान उभरता आता है
घुल सी गई रूह में उदासी
इक ईमा इक इशारा मर रहा है
दूर से शहर-ए-फ़िक्र सुहाना लगता है
दिखाई देने के और दिखाई न देने के दरमियान सा कुछ
बुझ गई आग तो कमरे में धुआँ ही रखना
बे-मसरफ़ बे-हासिल दुख
बंद फ़सीलें शहर की तोड़ें ज़ात की गिरहें खोलें
बजा कि पाबंद-ए-कूचा-ए-नाज़ हम हुए थे
बजा कि पाबंद-ए-कूचा-ए-नाज़ हम हुए थे
बजा कि लुत्फ़ है दुनिया में शोर करने का