दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
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शौक़िया कोई नहीं होता ग़लत
मैं बद-नसीब हूँ मुझ को न दे ख़ुशी इतनी
हम को शाहों की अदालत से तवक़्क़ो' तो नहीं
मैं यूँ तलाश-ए-यार में दीवाना हो गया
वो अबरू याद आते हैं वो मिज़्गाँ याद आते हैं
अब मिरी हालत-ए-ग़मनाक पे कुढ़ना कैसा
दुआएँ दे के जो दुश्नाम लेते रहते हैं
बे-जुम्बिश-ए-अब्रू तो नहीं काम चलेगा
पहले बड़ी रग़बत थी तिरे नाम से मुझ को
कितनी बे-साख़्ता ख़ता हूँ मैं
दरोग़ के इम्तिहाँ-कदे में सदा यही कारोबार होगा
हाथ से खो न बैठना उस को