अब मरी हालत-ए-ग़मनाक पे कुढ़ना कैसा
क्या हुआ मुझ को अगर आप नय नाशाद किया
हादसा है मगर ऐसा तो अलमनाक नहीं
यानी इक दोस्त नय इक दोस्त को बर्बाद किया
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Javed Akhtar
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Gulzar
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(952) Peoples Rate This
मायूस हो गई है दुआ भी जबीन भी
काफ़ी वसीअ सिलसिला-ए-इख़्तियार है
कहते हैं उम्र-ए-रफ़्ता कभी लौटती नहीं
शौक़िया कोई नहीं होता ग़लत
मरने वाले तो ख़ैर हैं बेबस
अफ़्साना चाहते थे वो अफ़्साना बन गया
अब मिरी हालत-ए-ग़मनाक पे कुढ़ना कैसा
ऐ दोस्त मोहब्बत के सदमे तन्हा ही उठाने पड़ते हैं
सो भी जा ऐ दिल-ए-मजरूह बहुत रात गई
शाम है और पार नद्दी के
ज़ुल्फ़-ए-बरहम सँभाल कर चलिए
मय-कदा था चाँदनी थी मैं न था