Heart Broken Poetry of Abu Mohammad Sahar

Heart Broken Poetry of Abu Mohammad Sahar
नामअबु मोहम्मद सहर
अंग्रेज़ी नामAbu Mohammad Sahar
जन्म की तारीख1930
मौत की तिथि2002

रह-ए-इश्क़-ओ-वफ़ा भी कूचा-ओ-बाज़ार हो जैसे

इश्क़ को हुस्न के अतवार से क्या निस्बत है

हमें तन्हाइयों में यूँ तो क्या क्या याद आता है

बला-ए-जाँ थी जो बज़्म-ए-तमाशा छोड़ दी मैं ने

ज़मीर-ए-नौ-ए-इंसानी के दिन हैं

ये तो नहीं कि बादिया-पैमा न आएगा

वक़्त ग़मनाक सवालों में न बर्बाद करें

सब की आँखों में जो समाया था

सब इक न इक सराब के चक्कर में रह गए

फूलों की तलब में थोड़ा सा आज़ार नहीं तो कुछ भी नहीं

माना अपनी जान को वो भी दिल का रोग लगाएँगे

ख़्वाबों का नश्शा है न तमन्ना का सिलसिला

खो के देखा था पा के देख लिया

काली ग़ज़ल सुनो न सुहानी ग़ज़ल सुनो

काम हर ज़ख़्म ने मरहम का किया हो जैसे

जब ये दावे थे कि हर दुख का मुदावा हो गए

इश्क़ की सई-ए-बद-अंजाम से डर भी न सके

हर ख़ौफ़ हर ख़तर से गुज़रना भी सीखिए

बस्तियाँ लुटती हैं ख़्वाबों के नगर जलते हैं

अब तक इलाज-ए-रंजिश-ए-बे-जा न कर सके

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