Ghazals of Aftab Iqbal Shamim

Ghazals of Aftab Iqbal Shamim
नामआफ़ताब इक़बाल शमीम
अंग्रेज़ी नामAftab Iqbal Shamim
जन्म की तारीख1933
जन्म स्थानpakistan

ये पेड़ ये पहाड़ ज़मीं की उमंग हैं

ये जो ठहरा हुआ मंज़र है बदलता ही नहीं

वो इत्र-ए-ख़ाक अब कहाँ पानी की बास में

वो अपने जुज़्व में खोया गया है इस हद तक

वो आसमाँ के दरख़शिंदा राहियोँ जैसा

वैसे तो बहुत धोया गया घर का अंधेरा

तमीज़-ए-पिसर-ए-ज़मीन व इब्न-ए-फ़लक न करना

तमीज़-ए-फ़र्ज़ंद-ए-अर्ज़-ओ-इब्न-ए-फ़लक न करना

रिज़्क़ का जब नादारों पर दरवाज़ा बंद हुआ

फिर बपा शहर में अफ़रातफ़री कर जाए

पंजों के बल खड़े हुए शब की चटान पर

नज़र के सामने रहना नज़र नहीं आना

नस्लें जो अँधेरे के महाज़ों पे लड़ी हैं

मिसाल-ए-सैल-ए-बला न ठहरे हवा न ठहरे

मैं जब भी छूने लगूँ तुम ज़रा परे हो जाओ

मैं अपने वास्ते रस्ता नया निकालता हूँ

कहीं सोता न रह जाऊँ सदा दे कर जगाओ ना

कभी ख़ुद को दर्द-शनास करो कभी आओ ना

जब वो इक़रार-ए-आश्नाई करे

जब चाहा ख़ुद को शाद या नाशाद कर लिया

इश्क़ में ये मजबूरी तो हो जाती है

हज़ीमतें जो फ़ना कर गईं ग़ुरूर मिरा

हर किसी का हर किसी से राब्ता टूटा हुआ

हाँफती नद्दी में दम टूटा हुआ था लहर का

हाँ उसी दिन धूप में हरियालियाँ शामिल हुईं

इक फ़ना के घाट उतरा एक पागल हो गया

इक चादर-ए-बोसीदा मैं दोश पे रखता हूँ

दिखाई जाएगी शहर-ए-शब में सहर की तमसील चल के देखें

बात एक जैसी है हज्व या क़सीदा लिख

असीर-ए-हाफ़िज़ा हो आज के जहान में आओ

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