दिल और दुनिया दोनों को ख़ुश रखने में
अपने-आप से दूरी तो हो जाती है
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इश्क़ में ये मजबूरी तो हो जाती है
पंजों के बल खड़े हुए शब की चटान पर
ये पेड़ ये पहाड़ ज़मीं की उमंग हैं
वैसे तो बहुत धोया गया घर का अंधेरा
फिर से तालीफ़-ए-दिल हो फिर कोई
रिज़्क़ का जब नादारों पर दरवाज़ा बंद हुआ
दीवार-ए-चीन
ख़्वाब के आगे शिकस्त-ए-ख़्वाब का था सामना
लफ़्ज़ों में ख़ाली जगहें भर लेने से
कभी ख़ुद को दर्द-शनास करो कभी आओ ना
बात एक जैसी है हज्व या क़सीदा लिख
मैं जब भी छूने लगूँ तुम ज़रा परे हो जाओ