साथियो अब मुझे रस्ते में उतरना होगा
डूबती नाव बचाने का नहीं हल कोई और
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भाव ताओ में कमी बेशी नहीं हो सकती
ये जो कुछ लोग ख़यालों में रहा करते हैं
हमारा दिल ज़रा उकता गया था घर में रह रह कर
तू मुझे तंग न कर ए दिल-ए-आवारा-मिज़ाज
बिछड़ने का इरादा है तो मुझ से मशवरा कर लो
नहीं था ध्यान कोई तोड़ते हुए सिगरेट
शिकस्त-ए-ज़िंदगी वैसे भी मौत ही है ना
मैं ख़ुद भी यार तुझे भूलने के हक़ में हूँ
तो फिर वो इश्क़ ये नक़्द-ओ-नज़र बराए-फ़रोख़्त
अब जो पत्थर है आदमी था कभी
छोड़ कर मुझ को तिरे सहन मैं जा बैठा है