Ghazals of Ahmad Ata

Ghazals of Ahmad Ata
नामअहमद अता
अंग्रेज़ी नामAhmad Ata

ये मिरा वहम तो कुछ और सुना जाता है

ये अक्स आप ही बनते हैं हम से मिलते हैं

वो ज़माना है कि अब कुछ नहीं दीवाने में

सफ़्हा-ए-ज़ीस्त जब पढूँगा तुम्हें

पहले हम अश्क थे फिर दीदा-ए-नम-नाक हुए

मिरे लिए तिरा होना अहम ज़ियादा है

मैं तिरी मानता लेकिन जो मिरा दिल है ना

मैं न होने से हुआ या'नी बड़ी तक़्सीर की

कोई गुमाँ हूँ कोई यक़ीं हूँ कि मैं नहीं हूँ

ख़्वाब का इज़्न था ता'बीर-ए-इजाज़त थी मुझे

कल ख़्वाब में इक परी मिली थी

इश्क़ से भाग के जाया भी नहीं जा सकता

हुई ग़ज़ल ही न कुछ बात बन सकी हम से

हमें न देखिए हम ग़म के मारे जैसे हैं

हमारी आँखें भी साहिब अजीब कितनी हैं

हमारा इश्क़ सलामत है यानी हम अभी हैं

इक रात मैं सो नहीं सका था

इक अश्क बहा होगा

दोनों के जो दरमियाँ ख़ला है

दिल कोई फूल नहीं और सितारा भी नहीं

बेबसी ऐसी भी होती है भला

ऐ मियाँ कौन ये कहता है मोहब्बत की है

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