Sad Poetry of Ahmad Ata

Sad Poetry of Ahmad Ata
नामअहमद अता
अंग्रेज़ी नामAhmad Ata

ये तिरा हिज्र अता दर्द अता कर्ब अता

ये जो रातों को मुझे ख़्वाब नहीं आते 'अता'

ये चादर एक अलामत बनी हुई थी यहाँ

लोग हँसते हैं हमें देख के तन्हा तन्हा

कोई ऐसा तो तिरे ब'अद नहीं रहना था

ये मिरा वहम तो कुछ और सुना जाता है

वो ज़माना है कि अब कुछ नहीं दीवाने में

पहले हम अश्क थे फिर दीदा-ए-नम-नाक हुए

मिरे लिए तिरा होना अहम ज़ियादा है

मैं न होने से हुआ या'नी बड़ी तक़्सीर की

ख़्वाब का इज़्न था ता'बीर-ए-इजाज़त थी मुझे

कल ख़्वाब में इक परी मिली थी

इश्क़ से भाग के जाया भी नहीं जा सकता

हुई ग़ज़ल ही न कुछ बात बन सकी हम से

हमें न देखिए हम ग़म के मारे जैसे हैं

हमारी आँखें भी साहिब अजीब कितनी हैं

हमारा इश्क़ सलामत है यानी हम अभी हैं

इक अश्क बहा होगा

दोनों के जो दरमियाँ ख़ला है

बेबसी ऐसी भी होती है भला

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