अहमद फ़राज़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अहमद फ़राज़ (page 8)

अहमद फ़राज़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अहमद फ़राज़ (page 8)
नामअहमद फ़राज़
अंग्रेज़ी नामAhmad Faraz
जन्म की तारीख1931
मौत की तिथि2008

वफ़ा के बाब में इल्ज़ाम-ए-आशिक़ी न लिया

उस ने सुकूत-ए-शब में भी अपना पयाम रख दिया

उस को जुदा हुए भी ज़माना बहुत हुआ

उस मंज़र-ए-सादा में कई जाल बंधे थे

उस का अपना ही करिश्मा है फ़ुसूँ है यूँ है

तुझ से मिल कर तो ये लगता है कि ऐ अजनबी दोस्त

तुझे है मश्क़-ए-सितम का मलाल वैसे ही

था अबस तर्क-ए-तअल्लुक़ का इरादा यूँ भी

तेरी बातें ही सुनाने आए

तेरे क़रीब आ के बड़ी उलझनों में हूँ

तेरे होते हुए महफ़िल में जलाते हैं चराग़

तिरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था वही तेरी जल्वागरी रही

तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझ को

तड़प उठूँ भी तो ज़ालिम तिरी दुहाई न दूँ

सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं

सुकूत-ए-शाम-ए-ख़िज़ाँ है क़रीब आ जाओ

सू-ए-फ़लक न जानिब-ए-महताब देखना

सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते जाते

शो'ला था जल-बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो

शगुफ़्त-ए-गुल की सदा में रंग-ए-चमन में आओ

सारा शहर बिलकता है

साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले

सामने उस के कभी उस की सताइश नहीं की

सभी कहें मिरे ग़म-ख़्वार के अलावा भी

सब क़रीने उसी दिलदार के रख देते हैं

सब लोग लिए संग-ए-मलामत निकल आए

रोग ऐसे भी ग़म-ए-यार से लग जाते हैं

रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ

रात के पिछले पहर रोने के आदी रोए

क़ुर्ब-ए-जानाँ का न मय-ख़ाने का मौसम आया

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