अहमद फ़राज़ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का अहमद फ़राज़ (page 9)
नाम | अहमद फ़राज़ |
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अंग्रेज़ी नाम | Ahmad Faraz |
जन्म की तारीख | 1931 |
मौत की तिथि | 2008 |
क़ुर्बतों में भी जुदाई के ज़माने माँगे
क़ुर्बत भी नहीं दिल से उतर भी नहीं जाता
क़ामत को तेरे सर्व सनोबर नहीं कहा
फिर उसी रहगुज़ार पर शायद
पेच रखते हो बहुत साहिबो दस्तार के बीच
पयाम आए हैं उस यार-ए-बेवफ़ा के मुझे
नज़र बुझी तो करिश्मे भी रोज़-ओ-शब के गए
नौहागरों में दीदा-ए-तर भी उसी का था
नहीं कि नामा-बरों को तलाश करते हैं
न तेरा क़ुर्ब न बादा है क्या किया जाए
न सह सका जब मसाफ़तों के अज़ाब सारे
न मंज़िलों को न हम रहगुज़र को देखते हैं
न हरीफ़-ए-जाँ न शरीक-ए-ग़म शब-ए-इंतिज़ार कोई तो हो
न दिल से आह न लब से सदा निकलती है
मुस्तक़िल महरूमियों पर भी तो दिल माना नहीं
मुंतज़िर कब से तहय्युर है तिरी तक़रीर का
मिज़ाज हम से ज़ियादा जुदा न था उस का
मिसाल-ए-दस्त-ए-ज़ुलेख़ा तपाक चाहता है
मंज़िलें एक सी आवारगीयाँ एक सी हैं
मैं तो मक़्तल में भी क़िस्मत का सिकंदर निकला
ले उड़ा फिर कोई ख़याल हमें
क्यूँ न हम अहद-ए-रिफ़ाक़त को भुलाने लग जाएँ
क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई गुफ़्तुगू करे
किसी जानिब से भी परचम न लहू का निकला
ख़ुद को तिरे मेआर से घट कर नहीं देखा
ख़ामोश हो क्यूँ दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते
कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
कशीदा सर से तवक़्क़ो अबस झुकाव की थी
करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे
कल हम ने बज़्म-ए-यार में क्या क्या शराब पी