लो फिर तिरे लबों पे उसी बेवफ़ा का ज़िक्र
अहमद 'फ़राज़' तुझ से कहा न बहुत हुआ
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Wasi Shah
Javed Akhtar
Gulzar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Habib Jalib
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(2866) Peoples Rate This
ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारे
मयूरका
सुना है उस के बदन की तराश ऐसी है
हम अगर मंज़िलें न बन पाए
ज़िंदगी पर इस से बढ़ कर तंज़ क्या होगा 'फ़राज़'
जाने किस आलम में तू बिछड़ा कि है तेरे बग़ैर
फिर उसी रहगुज़ार पर शायद
मैं तो मक़्तल में भी क़िस्मत का सिकंदर निकला
ये मैं भी क्या हूँ उसे भूल कर उसी का रहा
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
सिलवटें हैं मिरे चेहरे पे तो हैरत क्यूँ है
न तेरा क़ुर्ब न बादा है क्या किया जाए