तेरे होते हुए आ जाती थी सारी दुनिया
आज तन्हा हूँ तो कोई नहीं आने वाला
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बन-बास
कठिन है राहगुज़र थोड़ी दूर साथ चलो
न तेरा क़ुर्ब न बादा है क्या किया जाए
रात भर हँसते हुए तारों ने
सरहदें
हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा
सिलवटें हैं मिरे चेहरे पे तो हैरत क्यूँ है
मयूरका
चले थे यार बड़े ज़ोम में हवा की तरह
भेद पाएँ तो रह-ए-यार में गुम हो जाएँ
ख़ामोश हो क्यूँ दाद-ए-जफ़ा क्यूँ नहीं देते
क़ुर्ब-ए-जानाँ का न मय-ख़ाने का मौसम आया