ख़मोश झील पे क्यूँ डोलने लगा बजरा
हवाएँ तुंद नहीं हैं किनारा दूर नहीं
भँवर का ज़िक्र न कर ज़िंदगी का लुत्फ़ न छीन
मुझे अभी किसी अंजाम का शुऊर नहीं
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
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Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Anwar Masood
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आँख खुल जाती है जब रात को सोते सोते
ये भी क्या चाल है हर गाम पे महशर का गुमाँ
यूँ तो पहने हुए पैराहन-ए-ख़ार आता हूँ
अपनी आवाज़ की लर्ज़िश पे तो क़ाबू पा लो
एहसास में फूल खिल रहे हैं
कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा
मैं ने इस दश्त की वुसअत में शबिस्ताँ पाए
सारी दुनिया हमें पहचानती है
तर्क-ए-दरयूज़ा
दुआ
यूँ बे-कार न बैठो दिन भर यूँ पैहम आँसू न बहाओ
ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-दौराँ की तरफ़ यूँ आया