किसी सूरत ये नुक्ता-चीनियाँ कुछ रंग तो लाईं
चलो यूँ ही सही अब नाम तो मशहूर है मेरा
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हम कि इक उम्र रहे इश्वा-ए-दुनिया के असीर
इक जिस्म हैं कि सर से जुदा होने वाले हैं
ये न देखो कि मिरे ज़ख़्म बहुत कारी हैं
कब से मैं सफ़र में हूँ मगर ये नहीं मा'लूम
उसी ख़ातिर हटा ली है मसाइल से तवज्जोह
थे यहाँ सारे अमल रद्द-ए-अमल के मुहताज
कुछ देर में ये दिल किसी गिनती में न होगा
और सी धूप घटा और सी रक्खी हुई है
आना ज़रा तफ़रीह रहेगी
इश्क़ इक मशग़ला-ए-जाँ भी तो हो सकता है
तख़्लीक़ ख़ुद किया था कल अपने में एक घर
जी-भर के सितारे जगमगाएँ