जी-भर के सितारे जगमगाएँ
महताब बुझा दिया गया है
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सुनता है यहाँ कौन समझता है यहाँ कौन
और सी धूप घटा और सी रक्खी हुई है
खोलीं वो दर किसी ने भी खोला न हो जिसे
थे यहाँ सारे अमल रद्द-ए-अमल के मुहताज
इक जिस्म हैं कि सर से जुदा होने वाले हैं
गर्द की तरह सर-ए-राहगुज़र बैठे हैं
चाहे हैं तमाशा मिरे अंदर कई मौसम
इक ख़्वाब है ये प्यास भी दरिया भी ख़्वाब है
पर्दा जो उठा दिया गया है
कुछ देर में ये दिल किसी गिनती में न होगा
कहाँ मैं और कहाँ गोशा-नशीनी का ये एलान
ज़ख़्म इतने हैं बदन पर कि कहीं दर्द नहीं